मंगलवार, 14 अक्टूबर 2014

जयपुर में लोकरंग का राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला पिछड़ा

फर्नीचर से दबी स्टालें  

प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम तारी
पहली बार वसूला गया शिल्पियों से शुल्क
कई स्टॉल रहे खाली, शिल्पी लौटे हताश
स्टालों पर स्थानीय दुकानदारों का कब्जा
कपड़ा बाजार बना राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला
असल शिल्पियों कि लिए घाटे का सौदा
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जवाहर कला केन्द्र के वार्षिक समारोह के रूप में मनाया जाने वाले लोकरंग के राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले के रंग इस बार फीके रहे। हर साल देश भर के हस्तशिल्प से सजने वाला यह मेला शिल्प की बजाय कपड़ा व्यापारियों से आबाद कपड़ा बाजार बनकर रह गया। मेले में लगी कुल 150 स्टॉल में से लगभग 75 स्टॉल पर केवल कपड़ा बेचा जा रहा है। कई स्टॉल धारकों ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि वो शिल्पी नहीं व्यापारी हैं और उन्होंने व्यापार के लिए ही स्टॉल का किराया चुकाया है।
स्टॉल के पैसों की खरीदारों से वसूली
पिछली 9 अक्टूबर को शिल्पग्राम में शुरू हुए मेले का मंगलवार को पांचवां दिन था और कमोबेश हर स्टॉल पर बिक्री ठंड़ी होने होने की चर्चा थी।
प्रशासनिक कमियों के चलते इस वर्ष लोकरंग के हस्तशिल्प मेले को भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय से आर्थिक अनुदान की राशि नहीं मिल पाई। जवाहर कला केन्द्र द्वारा शिल्पियों से स्टॉल का किराया लेने के कारण कई वास्तविक हस्तशिल्पियों ने मेले से मूंह मोड़ा। मेले से शिल्पियों की विमुखता को देखते हुए जेकेके प्रशासन द्वारा स्थानीय व दिल्लाी के व्यापारियों को पांच-पांच हजार रुपए में स्टॉल का आवंटन किया। ऐसे में मेले में बिकने वाले उत्पादों के दाम 20 फीसदी तक बड़ा कर बोले गए। नतीजतन खरीदार की मेले के प्रति वह रुचि नहीं रही जो पिछले सालों तक देखी जा रही थी। 
कई वापस लौटे, कुछ मजबूरी में रुके
प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम यह रहा कि देश के दूर-दराज के इलाकों से आए अधिकतर शिल्पी केवल इस कारण वापिस लौट गए कि उन्हें यह सूचना ही नहीं भेजी गई थी कि इस वर्ष स्टॉल के आवंटन सशुल्क होंगे। मेले में उपस्थित फर्नीचर व टेराकोटा शिल्पी भी इस मजबूरी के चलते शामिल हुए हैं कि जानकारी के अभाव में वो खासा माल भाड़ा देकर भारी सामान अपने साथ लाए थे।
प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम 
मूमल के पूर्व के अंक में जेकेके सूत्रों के हवाले से यह समाचार प्रकाशित किया गया था कि केन्द्र ने पत्र द्वारा शिल्पियों को इस बार स्टॉल का आवंटन सशुल्क हो सकने की सूचना दी है। इधर कुछ एक उपस्थित शिल्पियों से बातचीत में यह सामने आया कि ऐसी कोई सूचना नहीं भेजी गई थी। शुल्क की जानकारी  शिल्पियों को मेले में आने के बाद ही प्राप्त हो पाई। केवल उन्हीं शिल्पियों को मेले में आने से पहले शुल्क की जानकारी थी जिन्होंने स्वयं केन्द्र से सम्पर्क कर जानकारी ली थी।
हस्तशिल्प के खरीदार हुए निराश
स्टॉल की कीमत निकालने के कारण मेले में सामान का मूल्य अधिक लगाया जा रहा है, जो खरीदारों को लुभा नहीं पा रहा। लकड़ी के फर्नीचर व कुछ टेराकोटा को इतना फैलाकर सजाया गया है कि उनके पीछे के स्टॉल दब कर रह गए हैं। दर्शक उस फैले हुए फर्नीचर को पार करके पीछे के स्टॉल तक पहंचने की परेशानी के चलते स्टॉलों को दूर से देखते हुए ही गुजर रहे हैं। इससे स्टॉलधारी काफी निराश हैं। इस परेशानी और ठंडी दुकानदारी के चलते कई स्थानीय स्टॉलधारी तो शाम 4 बजे तक स्टॉल्स ही नहीं खोल रहे।
नहीं दिखे अनेक शिल्प
बंगाल का सोला, सिप्पियों व बांस से सजा शिल्प, बंगाल का कांथा वर्क, उड़ीसा का शिल्प, दक्षिण के लैम्प शैड, मुखौटे व सजावटी सामान, दक्षिण का ही लकड़ी शिल्प, आसाम व गोवा का शिल्प, जोधपुर की जूतियां, जयपुर की कठपुतलियां व अन्य सजावटी सामान, भीलवाड़ा की फड़ चित्रकारी, उड़ीसा की पट चित्रकारी, विभिन्न स्थानों से आने वाली पेपरमेशी शिल्प व पेंटिंग्स इत्यिादि।





गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

जयपुर में लोकरंग के तहत राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले की तैयारियां

पहला दिन खाली खाली सा 
इस बार महंगे हो सकते है शिल्प मेले के हैंडीक्राफ्ट आइटम
शिल्पियों से स्टॉल का शुल्क पांच हजार लेंगे
हस्तशिल्प विभाग से सहयोग राशि मिलने के आसार नहीं
मूमल नेटवर्क, जयपुर। शहर में प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी दीपावली पूर्व के शिल्प मेलों की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में बसे शिल्पी अपनी कला का हुनर दिखाने के लिए अन्तिम तैयारियों में जुटे हैं। दूसरी ओर इस साल जयपुर के जवाहर कला केंद्र में आयोजित होने वाले लोकरंग के शिल्प मेले के लिए केन्द्र सरकार से सहयोग राशि मिलने के आसार बहुत कम नजर आ रहे हैं। इसका सीधा असर मेले में बिकने वाले उत्पादों के मूल्य पर नजर आ सकता है।
तैयारियां जोरों पर
हर वर्ष दीपावली से पहले दो शिल्प मेलों की तैयारी बड़े पैमाने पर की जाती है। आमेर रोड स्थित परशुरामद्वारा का हस्तशिल्प मेला और जवाहर कला केन्द्र के वार्षिक उत्सव लोकरंग के तहत लगने वाला राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला। दोनों मेले अपनी तैयारियों के चरम पर हैं। जयपुरवासी बड़े उत्साह के साथ हस्तशिल्प के नए अन्दाज देखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यृूं तो हमेशा हस्तशिल्प को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा हस्तशिल्पियों को नि:शुल्क स्टॉल्स का आवंटन किया जाता है, लेकिन इस बार संभवत: व्यवस्था में परिवर्तन होने की आशंका है।
शिल्पियों से वसूलेंगे शुल्क
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रशासनिक कारणों के चलते इस वर्ष जवाहर कला केन्द्र को वस्त्र मंत्रालय के हस्तशिल्प विभाग से प्राप्त आर्थिक सहयोग संभवत नहीं मिल पाएगा। केन्द्र ने मेले के लिए हस्तशिल्पियों को आमन्त्रित किए गए पत्र में इस बात का उल्लेख किया है। केन्द्र ने हस्तशिल्पियों को यह सूचना दी है कि यदि भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा आर्थिकसहयोग की राशि प्राप्त नहीं हो पाती है तो उन्हें स्टॉल के लिए शुल्क का भुगतान करना पड़ेगा। शुल्क की राशि प्रतिदिन 500 रुपए तक हो सकती है। इस पत्र को पाने के बाद शिल्पी असमंजस में है।
महंगेे हो सकते हैं उत्पाद
जाहिर बात है कि यदि शिल्पियों को केन्द्र से स:शुल्क स्टॉल का आवंटन होता है तो इसका सीधा असर मेले में बिकने वाले हस्तशिल्प उत्पादों पर ही पड़ेगा। इस नई व्यवस्था के साथ ही वार्षिक हस्तशिल्प मेलों में शिल्पियों से शुल्क लेने की नई परम्परा शुरू हो सकती है। इस संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि जवाहर कला केन्द्र यदि इस प्रयोग में सफल होता है और शिल्पी शुल्क देने के साथ मेले में हिस्सा लेने को सहमत होते हैं तो रूडा द्वारा आयोजित मेलों में भी शिल्पियों से शुल्क वसूला जा सकता है।
रूडा को भी नही मिला सहयोग
उल्लेखनीय है कि बीते अगस्त में रूडा द्वारा जेकेके के शिल्पग्राम में आयोजित मेले के लिए भी भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा सहयोग राशि प्राप्त नहीं हो पाई थी। रूडा द्वारा डीसीएच को भेजे गए प्रस्ताव की स्वीकृति ही मेला बीत जाने के बाद प्राप्त हुई।
अधिकारी का कहना है ज्यादा असर नहीं पड़ेगा
जवाहर कला केन्द्र के जन सम्पर्क अधिकारी का कहना है कि लोकरंग के राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले के लिए वस्त्र मंत्रालय के हस्तशिल्प विभाग से सहयोग राशि के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। अगर वह प्राप्त नहीं हुई तो हस्तशिल्पियों से स्टॉल के लिए शुल्क वसूलने का प्रस्ताव है। इससे उत्पादों की कीमत बढ़ सकती है, लेकिन इससे कोई ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

कपड़े वालों की दुकाने सजी 

कपड़े वालों की दुकाने सजी 

पॉश फर्नीचर 



रविवार, 11 मई 2014

जयपुर के जेकेके में सजेंगे पुडुकोट्टई के अश्व

पूरी तरह तैयार होने के बाद कुछ ऐसे होंगे पुडुकोट्टई के अश्व
माटी सृजन शिविर
मूमल नेटवर्क, जयपुर। यहां के जवाहर कला केंद्र के परिसर में बहुत जल्द ही पुडुकोट्टई के टेराकोटा अश्व सजेंगे।
घोड़ों के मूल आकार की यह रचनाएं यहां चल रहे माटी सृजन शिविर में तैयार की जा रही हैं। पन्द्रह दिवसीय यह शिविर 7 मई को शुरू आ है जो 21 मई तक चलेगा। शिविर में राजस्थान के दो और तमिलनाडु के एक कलाकार की टीम टेराकोटा कृतियों का सृजन कर रही हैें।
तमिलनाडु के पुडुकोट्टई गांव में बनने वाले घोड़े यहां पहली बार देखने को मिलेंगे। राजस्थान के रामगढ़ (अलवर) और मोलेला (राजसमंद) के कलाकार भी शिविर में पूरे मनोयोग से लगे हैं लेकिन स्थानीय कला प्रेमियों के देखने को अब तक तो कुछ नया नहीं है, हो सकता है शिविर के पूरा होने तक प्रदेश के ये शिल्पी कुछ नया सृजन कर दें?
मोलेला की मिट्टी से खेलते-खेलते उसे विभिन्न आकार देते हुए बहुत कुछ कहने वाले कलाकार जमना लाल कुम्हार यहां देव संग्रह की रचना कर रहे हैं। अपने युवा सहायक  प्रशंान्त के साथ उनहोंने लगभग 5 गुणा 3 फीट का एक फलक तैयार किया है। मिट्टी के लिए बिना किसी सपोर्ट के बनाए गए इस फलक पर विभिन्न लोक देवी-देवताओं की आकृतियां उभरनी शुरू हुई हैं। मौसम के हालात सामान्य रहे तो यह रचना अगलेे 10-12 दिनों में तैयार हो जाएगी।
देव संग्रह की रचना करते मोलेला के जमनालाल कुम्हार
पूरी तरह तैयार होने के बाद कुछ ऐसा होगा देव संग्रह
 अलवर के रामगढ़ गांव से आए ओम प्रकाश गालव अपने साथियों के साथ मिलकर मिट्टी के बड़े-बढ़े पात्र बनाने में जुटे हैं। सन् 2010 में इसी विधा में नेशनल अवार्ड प्राप्त करने वाले ओम प्रकाश हस्तशिल्प के लिए युनेस्को एक्सेलन्स अवार्ड से भी संम्मानित हो चुके हैं।
मिट्टी के पात्र तैयार करते
 राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त
शिल्पी ओम प्रकाश
तमिलनाडु के पुड़कोट्टई गांव से आए शिल्पी आर. मेयर और उनके साथी बड़े  आकार के दो घोड़े बना रहे हैं। यह घोड़ेे वहां के लोक देवता अय्यानर के चढ़ावे के रूप में प्रति वर्ष हजारों की संख्या में तैयार किए जाते हैं। स्थानीय लोग अपनी मान्यता पूरी होने पर यह घोड़े अय्यानर को अर्पित करते हैं।
माटी सृजन शिविर में बन रहे पुडुकोट्टई के अश्व
शिविर के संयोजक किशोर सिंह के अनुसार माटी के इन शिल्पों को तैयार करने के बाद परम्परागत तरीके से आंच में तपाया जाएगा। इसके लिए मौसम का अनुकूल होना जरूरी होता है। वैसे भी टेराकोटा शिल्प के लिए बहुत अधिक गर्मी या बहुत अधिक सर्दी अनकूल नहीं होती और वर्षा ऋतु तो खैर पूरी तरह प्रतिकूल होती है। सर्दी में जहां मृण्कला बहुत देर से सूखती है, गर्मी में यह बहुत जल्दी सूख कर तडक जाती है। अभी चल रहे शिविर में भी शिल्पी अपनी रचनाओं को सूती कपड़े से ढांप कर गर्म हवाओं से बचा रहे हैं।
-प्रस्तुति: राहुल सेन