फर्नीचर से दबी स्टालें |
प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम तारी
पहली बार वसूला गया शिल्पियों से शुल्क
कई स्टॉल रहे खाली, शिल्पी लौटे हताश
स्टालों पर स्थानीय दुकानदारों का कब्जा
कपड़ा बाजार बना राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला
असल शिल्पियों कि लिए घाटे का सौदा
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जवाहर कला केन्द्र के वार्षिक समारोह के रूप में मनाया जाने वाले लोकरंग के राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले के रंग इस बार फीके रहे। हर साल देश भर के हस्तशिल्प से सजने वाला यह मेला शिल्प की बजाय कपड़ा व्यापारियों से आबाद कपड़ा बाजार बनकर रह गया। मेले में लगी कुल 150 स्टॉल में से लगभग 75 स्टॉल पर केवल कपड़ा बेचा जा रहा है। कई स्टॉल धारकों ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि वो शिल्पी नहीं व्यापारी हैं और उन्होंने व्यापार के लिए ही स्टॉल का किराया चुकाया है।स्टॉल के पैसों की खरीदारों से वसूली
पिछली 9 अक्टूबर को शिल्पग्राम में शुरू हुए मेले का मंगलवार को पांचवां दिन था और कमोबेश हर स्टॉल पर बिक्री ठंड़ी होने होने की चर्चा थी।
प्रशासनिक कमियों के चलते इस वर्ष लोकरंग के हस्तशिल्प मेले को भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय से आर्थिक अनुदान की राशि नहीं मिल पाई। जवाहर कला केन्द्र द्वारा शिल्पियों से स्टॉल का किराया लेने के कारण कई वास्तविक हस्तशिल्पियों ने मेले से मूंह मोड़ा। मेले से शिल्पियों की विमुखता को देखते हुए जेकेके प्रशासन द्वारा स्थानीय व दिल्लाी के व्यापारियों को पांच-पांच हजार रुपए में स्टॉल का आवंटन किया। ऐसे में मेले में बिकने वाले उत्पादों के दाम 20 फीसदी तक बड़ा कर बोले गए। नतीजतन खरीदार की मेले के प्रति वह रुचि नहीं रही जो पिछले सालों तक देखी जा रही थी।
कई वापस लौटे, कुछ मजबूरी में रुके
प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम यह रहा कि देश के दूर-दराज के इलाकों से आए अधिकतर शिल्पी केवल इस कारण वापिस लौट गए कि उन्हें यह सूचना ही नहीं भेजी गई थी कि इस वर्ष स्टॉल के आवंटन सशुल्क होंगे। मेले में उपस्थित फर्नीचर व टेराकोटा शिल्पी भी इस मजबूरी के चलते शामिल हुए हैं कि जानकारी के अभाव में वो खासा माल भाड़ा देकर भारी सामान अपने साथ लाए थे।
प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम
मूमल के पूर्व के अंक में जेकेके सूत्रों के हवाले से यह समाचार प्रकाशित किया गया था कि केन्द्र ने पत्र द्वारा शिल्पियों को इस बार स्टॉल का आवंटन सशुल्क हो सकने की सूचना दी है। इधर कुछ एक उपस्थित शिल्पियों से बातचीत में यह सामने आया कि ऐसी कोई सूचना नहीं भेजी गई थी। शुल्क की जानकारी शिल्पियों को मेले में आने के बाद ही प्राप्त हो पाई। केवल उन्हीं शिल्पियों को मेले में आने से पहले शुल्क की जानकारी थी जिन्होंने स्वयं केन्द्र से सम्पर्क कर जानकारी ली थी।
हस्तशिल्प के खरीदार हुए निराश
स्टॉल की कीमत निकालने के कारण मेले में सामान का मूल्य अधिक लगाया जा रहा है, जो खरीदारों को लुभा नहीं पा रहा। लकड़ी के फर्नीचर व कुछ टेराकोटा को इतना फैलाकर सजाया गया है कि उनके पीछे के स्टॉल दब कर रह गए हैं। दर्शक उस फैले हुए फर्नीचर को पार करके पीछे के स्टॉल तक पहंचने की परेशानी के चलते स्टॉलों को दूर से देखते हुए ही गुजर रहे हैं। इससे स्टॉलधारी काफी निराश हैं। इस परेशानी और ठंडी दुकानदारी के चलते कई स्थानीय स्टॉलधारी तो शाम 4 बजे तक स्टॉल्स ही नहीं खोल रहे।
नहीं दिखे अनेक शिल्प
बंगाल का सोला, सिप्पियों व बांस से सजा शिल्प, बंगाल का कांथा वर्क, उड़ीसा का शिल्प, दक्षिण के लैम्प शैड, मुखौटे व सजावटी सामान, दक्षिण का ही लकड़ी शिल्प, आसाम व गोवा का शिल्प, जोधपुर की जूतियां, जयपुर की कठपुतलियां व अन्य सजावटी सामान, भीलवाड़ा की फड़ चित्रकारी, उड़ीसा की पट चित्रकारी, विभिन्न स्थानों से आने वाली पेपरमेशी शिल्प व पेंटिंग्स इत्यिादि।