रविवार, 11 मई 2014

जयपुर के जेकेके में सजेंगे पुडुकोट्टई के अश्व

पूरी तरह तैयार होने के बाद कुछ ऐसे होंगे पुडुकोट्टई के अश्व
माटी सृजन शिविर
मूमल नेटवर्क, जयपुर। यहां के जवाहर कला केंद्र के परिसर में बहुत जल्द ही पुडुकोट्टई के टेराकोटा अश्व सजेंगे।
घोड़ों के मूल आकार की यह रचनाएं यहां चल रहे माटी सृजन शिविर में तैयार की जा रही हैं। पन्द्रह दिवसीय यह शिविर 7 मई को शुरू आ है जो 21 मई तक चलेगा। शिविर में राजस्थान के दो और तमिलनाडु के एक कलाकार की टीम टेराकोटा कृतियों का सृजन कर रही हैें।
तमिलनाडु के पुडुकोट्टई गांव में बनने वाले घोड़े यहां पहली बार देखने को मिलेंगे। राजस्थान के रामगढ़ (अलवर) और मोलेला (राजसमंद) के कलाकार भी शिविर में पूरे मनोयोग से लगे हैं लेकिन स्थानीय कला प्रेमियों के देखने को अब तक तो कुछ नया नहीं है, हो सकता है शिविर के पूरा होने तक प्रदेश के ये शिल्पी कुछ नया सृजन कर दें?
मोलेला की मिट्टी से खेलते-खेलते उसे विभिन्न आकार देते हुए बहुत कुछ कहने वाले कलाकार जमना लाल कुम्हार यहां देव संग्रह की रचना कर रहे हैं। अपने युवा सहायक  प्रशंान्त के साथ उनहोंने लगभग 5 गुणा 3 फीट का एक फलक तैयार किया है। मिट्टी के लिए बिना किसी सपोर्ट के बनाए गए इस फलक पर विभिन्न लोक देवी-देवताओं की आकृतियां उभरनी शुरू हुई हैं। मौसम के हालात सामान्य रहे तो यह रचना अगलेे 10-12 दिनों में तैयार हो जाएगी।
देव संग्रह की रचना करते मोलेला के जमनालाल कुम्हार
पूरी तरह तैयार होने के बाद कुछ ऐसा होगा देव संग्रह
 अलवर के रामगढ़ गांव से आए ओम प्रकाश गालव अपने साथियों के साथ मिलकर मिट्टी के बड़े-बढ़े पात्र बनाने में जुटे हैं। सन् 2010 में इसी विधा में नेशनल अवार्ड प्राप्त करने वाले ओम प्रकाश हस्तशिल्प के लिए युनेस्को एक्सेलन्स अवार्ड से भी संम्मानित हो चुके हैं।
मिट्टी के पात्र तैयार करते
 राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त
शिल्पी ओम प्रकाश
तमिलनाडु के पुड़कोट्टई गांव से आए शिल्पी आर. मेयर और उनके साथी बड़े  आकार के दो घोड़े बना रहे हैं। यह घोड़ेे वहां के लोक देवता अय्यानर के चढ़ावे के रूप में प्रति वर्ष हजारों की संख्या में तैयार किए जाते हैं। स्थानीय लोग अपनी मान्यता पूरी होने पर यह घोड़े अय्यानर को अर्पित करते हैं।
माटी सृजन शिविर में बन रहे पुडुकोट्टई के अश्व
शिविर के संयोजक किशोर सिंह के अनुसार माटी के इन शिल्पों को तैयार करने के बाद परम्परागत तरीके से आंच में तपाया जाएगा। इसके लिए मौसम का अनुकूल होना जरूरी होता है। वैसे भी टेराकोटा शिल्प के लिए बहुत अधिक गर्मी या बहुत अधिक सर्दी अनकूल नहीं होती और वर्षा ऋतु तो खैर पूरी तरह प्रतिकूल होती है। सर्दी में जहां मृण्कला बहुत देर से सूखती है, गर्मी में यह बहुत जल्दी सूख कर तडक जाती है। अभी चल रहे शिविर में भी शिल्पी अपनी रचनाओं को सूती कपड़े से ढांप कर गर्म हवाओं से बचा रहे हैं।
-प्रस्तुति: राहुल सेन 


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