मंगलवार, 14 अक्टूबर 2014

जयपुर में लोकरंग का राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला पिछड़ा

फर्नीचर से दबी स्टालें  

प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम तारी
पहली बार वसूला गया शिल्पियों से शुल्क
कई स्टॉल रहे खाली, शिल्पी लौटे हताश
स्टालों पर स्थानीय दुकानदारों का कब्जा
कपड़ा बाजार बना राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला
असल शिल्पियों कि लिए घाटे का सौदा
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जवाहर कला केन्द्र के वार्षिक समारोह के रूप में मनाया जाने वाले लोकरंग के राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले के रंग इस बार फीके रहे। हर साल देश भर के हस्तशिल्प से सजने वाला यह मेला शिल्प की बजाय कपड़ा व्यापारियों से आबाद कपड़ा बाजार बनकर रह गया। मेले में लगी कुल 150 स्टॉल में से लगभग 75 स्टॉल पर केवल कपड़ा बेचा जा रहा है। कई स्टॉल धारकों ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि वो शिल्पी नहीं व्यापारी हैं और उन्होंने व्यापार के लिए ही स्टॉल का किराया चुकाया है।
स्टॉल के पैसों की खरीदारों से वसूली
पिछली 9 अक्टूबर को शिल्पग्राम में शुरू हुए मेले का मंगलवार को पांचवां दिन था और कमोबेश हर स्टॉल पर बिक्री ठंड़ी होने होने की चर्चा थी।
प्रशासनिक कमियों के चलते इस वर्ष लोकरंग के हस्तशिल्प मेले को भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय से आर्थिक अनुदान की राशि नहीं मिल पाई। जवाहर कला केन्द्र द्वारा शिल्पियों से स्टॉल का किराया लेने के कारण कई वास्तविक हस्तशिल्पियों ने मेले से मूंह मोड़ा। मेले से शिल्पियों की विमुखता को देखते हुए जेकेके प्रशासन द्वारा स्थानीय व दिल्लाी के व्यापारियों को पांच-पांच हजार रुपए में स्टॉल का आवंटन किया। ऐसे में मेले में बिकने वाले उत्पादों के दाम 20 फीसदी तक बड़ा कर बोले गए। नतीजतन खरीदार की मेले के प्रति वह रुचि नहीं रही जो पिछले सालों तक देखी जा रही थी। 
कई वापस लौटे, कुछ मजबूरी में रुके
प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम यह रहा कि देश के दूर-दराज के इलाकों से आए अधिकतर शिल्पी केवल इस कारण वापिस लौट गए कि उन्हें यह सूचना ही नहीं भेजी गई थी कि इस वर्ष स्टॉल के आवंटन सशुल्क होंगे। मेले में उपस्थित फर्नीचर व टेराकोटा शिल्पी भी इस मजबूरी के चलते शामिल हुए हैं कि जानकारी के अभाव में वो खासा माल भाड़ा देकर भारी सामान अपने साथ लाए थे।
प्रशासनिक अव्यवस्था का आलम 
मूमल के पूर्व के अंक में जेकेके सूत्रों के हवाले से यह समाचार प्रकाशित किया गया था कि केन्द्र ने पत्र द्वारा शिल्पियों को इस बार स्टॉल का आवंटन सशुल्क हो सकने की सूचना दी है। इधर कुछ एक उपस्थित शिल्पियों से बातचीत में यह सामने आया कि ऐसी कोई सूचना नहीं भेजी गई थी। शुल्क की जानकारी  शिल्पियों को मेले में आने के बाद ही प्राप्त हो पाई। केवल उन्हीं शिल्पियों को मेले में आने से पहले शुल्क की जानकारी थी जिन्होंने स्वयं केन्द्र से सम्पर्क कर जानकारी ली थी।
हस्तशिल्प के खरीदार हुए निराश
स्टॉल की कीमत निकालने के कारण मेले में सामान का मूल्य अधिक लगाया जा रहा है, जो खरीदारों को लुभा नहीं पा रहा। लकड़ी के फर्नीचर व कुछ टेराकोटा को इतना फैलाकर सजाया गया है कि उनके पीछे के स्टॉल दब कर रह गए हैं। दर्शक उस फैले हुए फर्नीचर को पार करके पीछे के स्टॉल तक पहंचने की परेशानी के चलते स्टॉलों को दूर से देखते हुए ही गुजर रहे हैं। इससे स्टॉलधारी काफी निराश हैं। इस परेशानी और ठंडी दुकानदारी के चलते कई स्थानीय स्टॉलधारी तो शाम 4 बजे तक स्टॉल्स ही नहीं खोल रहे।
नहीं दिखे अनेक शिल्प
बंगाल का सोला, सिप्पियों व बांस से सजा शिल्प, बंगाल का कांथा वर्क, उड़ीसा का शिल्प, दक्षिण के लैम्प शैड, मुखौटे व सजावटी सामान, दक्षिण का ही लकड़ी शिल्प, आसाम व गोवा का शिल्प, जोधपुर की जूतियां, जयपुर की कठपुतलियां व अन्य सजावटी सामान, भीलवाड़ा की फड़ चित्रकारी, उड़ीसा की पट चित्रकारी, विभिन्न स्थानों से आने वाली पेपरमेशी शिल्प व पेंटिंग्स इत्यिादि।





गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

जयपुर में लोकरंग के तहत राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले की तैयारियां

पहला दिन खाली खाली सा 
इस बार महंगे हो सकते है शिल्प मेले के हैंडीक्राफ्ट आइटम
शिल्पियों से स्टॉल का शुल्क पांच हजार लेंगे
हस्तशिल्प विभाग से सहयोग राशि मिलने के आसार नहीं
मूमल नेटवर्क, जयपुर। शहर में प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी दीपावली पूर्व के शिल्प मेलों की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में बसे शिल्पी अपनी कला का हुनर दिखाने के लिए अन्तिम तैयारियों में जुटे हैं। दूसरी ओर इस साल जयपुर के जवाहर कला केंद्र में आयोजित होने वाले लोकरंग के शिल्प मेले के लिए केन्द्र सरकार से सहयोग राशि मिलने के आसार बहुत कम नजर आ रहे हैं। इसका सीधा असर मेले में बिकने वाले उत्पादों के मूल्य पर नजर आ सकता है।
तैयारियां जोरों पर
हर वर्ष दीपावली से पहले दो शिल्प मेलों की तैयारी बड़े पैमाने पर की जाती है। आमेर रोड स्थित परशुरामद्वारा का हस्तशिल्प मेला और जवाहर कला केन्द्र के वार्षिक उत्सव लोकरंग के तहत लगने वाला राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला। दोनों मेले अपनी तैयारियों के चरम पर हैं। जयपुरवासी बड़े उत्साह के साथ हस्तशिल्प के नए अन्दाज देखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यृूं तो हमेशा हस्तशिल्प को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा हस्तशिल्पियों को नि:शुल्क स्टॉल्स का आवंटन किया जाता है, लेकिन इस बार संभवत: व्यवस्था में परिवर्तन होने की आशंका है।
शिल्पियों से वसूलेंगे शुल्क
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रशासनिक कारणों के चलते इस वर्ष जवाहर कला केन्द्र को वस्त्र मंत्रालय के हस्तशिल्प विभाग से प्राप्त आर्थिक सहयोग संभवत नहीं मिल पाएगा। केन्द्र ने मेले के लिए हस्तशिल्पियों को आमन्त्रित किए गए पत्र में इस बात का उल्लेख किया है। केन्द्र ने हस्तशिल्पियों को यह सूचना दी है कि यदि भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा आर्थिकसहयोग की राशि प्राप्त नहीं हो पाती है तो उन्हें स्टॉल के लिए शुल्क का भुगतान करना पड़ेगा। शुल्क की राशि प्रतिदिन 500 रुपए तक हो सकती है। इस पत्र को पाने के बाद शिल्पी असमंजस में है।
महंगेे हो सकते हैं उत्पाद
जाहिर बात है कि यदि शिल्पियों को केन्द्र से स:शुल्क स्टॉल का आवंटन होता है तो इसका सीधा असर मेले में बिकने वाले हस्तशिल्प उत्पादों पर ही पड़ेगा। इस नई व्यवस्था के साथ ही वार्षिक हस्तशिल्प मेलों में शिल्पियों से शुल्क लेने की नई परम्परा शुरू हो सकती है। इस संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि जवाहर कला केन्द्र यदि इस प्रयोग में सफल होता है और शिल्पी शुल्क देने के साथ मेले में हिस्सा लेने को सहमत होते हैं तो रूडा द्वारा आयोजित मेलों में भी शिल्पियों से शुल्क वसूला जा सकता है।
रूडा को भी नही मिला सहयोग
उल्लेखनीय है कि बीते अगस्त में रूडा द्वारा जेकेके के शिल्पग्राम में आयोजित मेले के लिए भी भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा सहयोग राशि प्राप्त नहीं हो पाई थी। रूडा द्वारा डीसीएच को भेजे गए प्रस्ताव की स्वीकृति ही मेला बीत जाने के बाद प्राप्त हुई।
अधिकारी का कहना है ज्यादा असर नहीं पड़ेगा
जवाहर कला केन्द्र के जन सम्पर्क अधिकारी का कहना है कि लोकरंग के राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले के लिए वस्त्र मंत्रालय के हस्तशिल्प विभाग से सहयोग राशि के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। अगर वह प्राप्त नहीं हुई तो हस्तशिल्पियों से स्टॉल के लिए शुल्क वसूलने का प्रस्ताव है। इससे उत्पादों की कीमत बढ़ सकती है, लेकिन इससे कोई ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

कपड़े वालों की दुकाने सजी 

कपड़े वालों की दुकाने सजी 

पॉश फर्नीचर 



रविवार, 11 मई 2014

जयपुर के जेकेके में सजेंगे पुडुकोट्टई के अश्व

पूरी तरह तैयार होने के बाद कुछ ऐसे होंगे पुडुकोट्टई के अश्व
माटी सृजन शिविर
मूमल नेटवर्क, जयपुर। यहां के जवाहर कला केंद्र के परिसर में बहुत जल्द ही पुडुकोट्टई के टेराकोटा अश्व सजेंगे।
घोड़ों के मूल आकार की यह रचनाएं यहां चल रहे माटी सृजन शिविर में तैयार की जा रही हैं। पन्द्रह दिवसीय यह शिविर 7 मई को शुरू आ है जो 21 मई तक चलेगा। शिविर में राजस्थान के दो और तमिलनाडु के एक कलाकार की टीम टेराकोटा कृतियों का सृजन कर रही हैें।
तमिलनाडु के पुडुकोट्टई गांव में बनने वाले घोड़े यहां पहली बार देखने को मिलेंगे। राजस्थान के रामगढ़ (अलवर) और मोलेला (राजसमंद) के कलाकार भी शिविर में पूरे मनोयोग से लगे हैं लेकिन स्थानीय कला प्रेमियों के देखने को अब तक तो कुछ नया नहीं है, हो सकता है शिविर के पूरा होने तक प्रदेश के ये शिल्पी कुछ नया सृजन कर दें?
मोलेला की मिट्टी से खेलते-खेलते उसे विभिन्न आकार देते हुए बहुत कुछ कहने वाले कलाकार जमना लाल कुम्हार यहां देव संग्रह की रचना कर रहे हैं। अपने युवा सहायक  प्रशंान्त के साथ उनहोंने लगभग 5 गुणा 3 फीट का एक फलक तैयार किया है। मिट्टी के लिए बिना किसी सपोर्ट के बनाए गए इस फलक पर विभिन्न लोक देवी-देवताओं की आकृतियां उभरनी शुरू हुई हैं। मौसम के हालात सामान्य रहे तो यह रचना अगलेे 10-12 दिनों में तैयार हो जाएगी।
देव संग्रह की रचना करते मोलेला के जमनालाल कुम्हार
पूरी तरह तैयार होने के बाद कुछ ऐसा होगा देव संग्रह
 अलवर के रामगढ़ गांव से आए ओम प्रकाश गालव अपने साथियों के साथ मिलकर मिट्टी के बड़े-बढ़े पात्र बनाने में जुटे हैं। सन् 2010 में इसी विधा में नेशनल अवार्ड प्राप्त करने वाले ओम प्रकाश हस्तशिल्प के लिए युनेस्को एक्सेलन्स अवार्ड से भी संम्मानित हो चुके हैं।
मिट्टी के पात्र तैयार करते
 राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त
शिल्पी ओम प्रकाश
तमिलनाडु के पुड़कोट्टई गांव से आए शिल्पी आर. मेयर और उनके साथी बड़े  आकार के दो घोड़े बना रहे हैं। यह घोड़ेे वहां के लोक देवता अय्यानर के चढ़ावे के रूप में प्रति वर्ष हजारों की संख्या में तैयार किए जाते हैं। स्थानीय लोग अपनी मान्यता पूरी होने पर यह घोड़े अय्यानर को अर्पित करते हैं।
माटी सृजन शिविर में बन रहे पुडुकोट्टई के अश्व
शिविर के संयोजक किशोर सिंह के अनुसार माटी के इन शिल्पों को तैयार करने के बाद परम्परागत तरीके से आंच में तपाया जाएगा। इसके लिए मौसम का अनुकूल होना जरूरी होता है। वैसे भी टेराकोटा शिल्प के लिए बहुत अधिक गर्मी या बहुत अधिक सर्दी अनकूल नहीं होती और वर्षा ऋतु तो खैर पूरी तरह प्रतिकूल होती है। सर्दी में जहां मृण्कला बहुत देर से सूखती है, गर्मी में यह बहुत जल्दी सूख कर तडक जाती है। अभी चल रहे शिविर में भी शिल्पी अपनी रचनाओं को सूती कपड़े से ढांप कर गर्म हवाओं से बचा रहे हैं।
-प्रस्तुति: राहुल सेन 


मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

बुधवार, 13 नवंबर 2013

काश! कला जगत में 'मैं' की जगह 'हम' हो


 मूमल संपादकीय
चहुमुखी सराहना तो कुछ आलोचना भी

जयपुर का पहला आर्ट समिट सम्पन्न हो गया। ...और जैसा कि अक्सर होता रहा है, इसके आयोजन के प्रति भी विरोधी स्वर मुखर हुए। समिट की समाप्ती से पहले ही जयपुर के कलाकारों की गुटबाजी के नतीजे सामने आने लगे। मुद्दा वही अहम् का रहा। इस प्रकार एक बेहतर पहल को सराहना के साथ-साथ आलोचना भी मिली।
 माहौल बोझिल हुआ है और संवेदनाए चोटिल
 कला जो कभी सत्यम शिवम सुन्दरम् और सुखाय का दूसरा नाम हुआ करती थी अब उसके पैमाने बदल गए हैं। कलाकारों क बीच की गुटबाजी, राजनीतिक दलों की खेमेबाजी का अहसास कराने लगी है। इसके चलते कला जगत का माहौल बोझिल हुआ है और संवेदनाए चोटिल। ऐसे में आपस में ही लड़ते-भिड़ते कलाकार क्योंकर आम आदमी को कला की ओर आकर्षित कर अपनी कला से उन्हें जोड़ पाएगें। यही कारण है कि कुछ कलाकार तो अब साफ ही कहने लगे हैं कि उनकी खास कला आम आदमी के लिए है ही नहीं।
इस गुटबाजी और एक-दूसरे पर लगाए जा रहे आरोप-प्रत्यारोप को प्रतिस्पर्था का क्रत्रिम चोला नहीं पहनाया जा सकता। स्वस्थ्य प्रतियोगिता तो एक अलग ही शै होती है जो कला को और निखारने का काम करती है। प्रतिस्पर्धियों को  और बेहतर कृतियों का कर्ता बनने को प्रेरित करती है। उसके इरादों को और मजबूत बनाती हैं। आम आदमी से सहजता पूर्वक जोड़ती है। जबकि गुटबाजी कलाकार के संवेदशील मन में विकार और द्वन्द के जाल में उलझा देती है। इसका सीधा असर उसकी कृतियों में देखने को मिल जाता है। साधना से साध्य के बजाय साधन और भोतिकता की ओर बढ़ते कला के कदम इसी का परिणाम है।
मैं के कठघरे में कैद 
हम यह नहीं कह रहे कि निर्मित कलाकृतियां सुंदर नहीं, लेकिन स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा के अभाव में वे कांतिहीन हैं, प्राणहीन भी कह सकते हैं। कला संसार सहजता, सरलता, सद्भाव और संवेदनाओं से सजता है। इसे मैं की जगह हम का भाव प्रभावी बना सकता है। यहां इस बात का अफसोस है कि कलाकार मैं के कठघरे में स्वयं को कैद करता जा रहा है।
 उधेड़ सकते हैं तो बुन भी सकते हैं।
यह सही है कि किसी भी आयोजन में बहुत कुछ अच्छा किए जाने के बाद भी कुछ कमियां रह जाती है। किसी आयोजन में ये कमियां कुछ होती हैं और किसी में बहुत कुछ छूट जाता है। इन कमियों को बेहतर सलाह, सहृदयता, सहनशीलता और साथ के बल पर दूर किया जा सकता है। जब जब एक खेमा अपने आयोजन में दूसरे खेमें की कला को स्थान नहीं दे पाता है तो दूसरे खेमें के आयोजन में पहले खेमे की कला को स्थान नहीं मिलने की विवशताएं उसी प्रकार की होती है जैसी पहले आयोजन के लिए थी। इसी प्रकार किसी फैस्टिवल या समिट के आयोजन में भी कई बाते अलग हो सकती हैं, ऐमें उनकी तुलना बेमानी हो जाती है। कुल मिलाकर हम चाएं तो कमियों की फटी चादर में अपनी मैं की टांग फंसा कर उसे और अधिक उधेड़ सकते हैं और चाहें तो हम के ताने-बाने से उसे बुन भी सकते हैं।

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

लोकरंग-2013, राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला

(19 से 29 अक्टूबर, 2013)
लोक कलाकारो और हस्त शिल्पियों के राष्ट्रीय उत्सव का शुभारंभ कल से
राज्यपाल श्रीमती माग्रेट आल्वा करेंगी उद्घाटन

Moomal Network, जयपुर। राज्यपाल, राजस्थान महामहिम श्रीमती माग्रेट आल्वा कल शनिवार 19 अक्टूबर, 2013 को सायं 6.30 बजे जवाहर कला केन्द्र, जयपुर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला-गांधी शिल्प बाजार एवं राष्ट्रीय लोकनृत्य समारोह लोकरंग-2013 का विधिवत् उद्घाटन कर शुभारंभ करेंगी।

यह जानकारी देते हुए श्रीमती राजेश यादव, महानिदेशक जवाहर कला केन्द्र ने बताया की शिल्पग्राम में लगे राष्ट्रीय हस्त शिल्प मेंले-गांधी शिल्प बाजार में देश के विभिन्न प्रदेशो के हस्तशिल्प कलाकार 150 से भी अधिक स्टॉल में अपनी हस्तशिल्प कला को प्रदर्शित कर रहे है।
विभिन्न प्रदेशो से आये इन शिल्पियों में कई राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त शिल्पियों के साथ कुछ नये कलाकार भी सम्मिलित हो रहे है। विकास आयुक्त (हस्तशिल्प), वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से आयोजित यह मेला शिल्प कला के खरीददारो को भी प्रोत्साहित करता है। मेले में राजस्थान सहित 21 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों के हस्तशिल्पियों की स्टॉल में वुड वर्किंग, एम्ब्रोडरी, टेक्सटाईल, लाख की चूडिय़ां, केन बेम्बू, हेण्डलूम, जूट, पेच वर्क, ब्लू पोटरी, टेराकोटा, पेपरमेशी, लेदर वर्क, जूट क्राफ्ट, लकड़ी के खिलौने, ड्राई फ्लावर, पेंटिग, बंधेज, कशीदाकरी आदि शिल्प कला के उत्कृष्ठ नमूने प्रदर्शित किये जा रहे है।
मेला प्रति दिवस मध्यांह 2.00 बजे से रात्रि 10.00 बजे तक दर्शकों के लिए खुला रहेगा। मेले के दौरान फूड जोन में अपने मन पसंद व अन्य जायकेदार व्यंजनों का दर्शक लुत्फ उठा सकेंगे।
त्यौहारों को और अधिक जीवंत बनाने के लिए लोक कलाकार अपनी संगीत और नृत्य की छठा प्रति दिवस शिल्पग्राम के डूंगरपुर हट के मंच पर
बिखेरेंगे। इसी क्रम में प्रथम दिवस 19 अक्टूबर को डूंगरपुर हट मंच पर छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार अपनी नृत्यों की प्रस्तुति देंगे, वहीं बहुरूपिया, कच्ची घोड़ी आदि के कलाकर भी अपनी कला से दर्शको को रू-ब-रू करवायेंगे। मेले मेे प्रवेश नि:शुल्क है।

राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह

11 दिवसीय इस 20 वें लोकरंग के दौरान केन्द्र के मध्यवर्ती सभागार में प्रतिदिवस देश के कोने-कोने से विभिन्न प्रदेशो, केन्द्र शासित प्रदेशो के नृत्य दल, गायक समूह और लोक नाट्य अपनी परंपरा अपने संगीत और अपने प्रदेश की सांस्कृतिक छटा से दर्शको को सराबोर करेंगे। इसमें प्रतिभागी 22 राज्य यथा महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, हिमाचल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर, झारखण्ड, कर्नाटक, असम, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश एवं राजस्थान के लगभग 1200 कलाकार भाग लेंगे।

लोकनृत्य समारोह के प्रथम दिन मध्यवर्ती में 19 अक्टूबर 2013 शनिवार सायं 7.00 बजे महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, ओडिशा, असम, मणिपुर, झारखण्ड, एवं राजस्थान के लगभग 150 कलाकार अपनी कला की प्रस्तुति देंगे। इसी क्रम में महाराष्ट्र के कलाकार-लांवणी, गुजरात-सिद्धिगोमा,
छत्तीसगढ़-पंथी, ओडिशा-गोटीपुआ, असम-बिंहु, मणिपुर-मणिपुर रास, झारखण्ड-करसा, संथाल, मानभूम छाऊ, राजस्थान - चरी नृत्य की प्रस्तुति
देंगे।

विशेष सामग्री

उन्नीस वर्षो के सफल आयोजन का इतिहास लिए राष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह 'लोकरंगÓ-2012 में अपनी शैशवास्था और तरूणाई से निकल अब पूर्ण वयस्क हो गया है। इस वर्ष भी देश के कोने - कोने से विभिन्न प्रदेशो, केन्द्र शासित प्रदेशो के नृत्य दल, गायक समूह और लोक नाट्य अपनी परम्परा, अपने संगीत और अपने प्रदेश की सांस्कृतिक छटा से सराबोर जवाहर कला केन्द्र में सम्मिलित होंगे।
भारतीय पंचांग के अनुसार कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर एकादशी अर्थात 19 से 29 अक्टूबर, 2013 तक चलने वाले इस समारोह में राजस्थान सहित देश के विभिन्न प्रान्तो के लोक एवं आदिवासी कलाकार अपने पारम्परिक वेश, अनूठे वाद्य यंत्रो और मद मस्त संगीत के साथ प्रति दिन दर्शको के समक्ष समृद्ध भारतीय संस्कृति की प्रस्तुति देंगे। समारोह का समापन सब राज्यो की सम्मिलित प्रस्तुति के रूप में 'ग्रान्ड फिनालेÓ निश्चय ही सुधी दर्शको को जोड़े रखने में सफल होगा।
गत 'लोकरंगÓ समारोह में उमड़े जन समूह को दृष्टिगत रख मुक्ताकाशी सभागार के बाहर परिसर में स्क्रीन पर कार्यक्रमों के जीवंत प्रसारण की भी व्यवस्था की गई है।
तीन दिवसीय समारोह से प्रारम्भ होकर यह लोकरंग अब ग्यारह दिनों तक मनाया जाता है किन्तु हर दिन दर्शकों का सैलाब आनन्द की लहरो में डूब जाता है। अपने 20वें सोपान पर लोकरंग अपनी गरिमा पूर्ण परम्परा के अनुरूप अनेकता में एकता की हमारी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के साथ
आपको सादर समर्पित है। आइए हर्ष, उल्लास और आनन्द के इस पर्व में आप भी सम्मिलित हो सकतेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे हैं।

राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला
(दोपहर 2 से रात्रि 10 बजे तक)
केन्द्र परिसर के शिल्पग्राम में आयोजित यह बहुरंगी मेला देश की प्रति-निधि हस्तकलाओं की वृहद प्रदर्शनी प्रस्तुत करता है। ग्रामीण राजस्थान की झलक प्रस्तुत करते शिल्पग्राम में प्रदेश के ग्रामीण वास्तु पर आधारित छ: घर बने हुए है। बृज (भरतपुर) के घर में खपरेल की छाजन है तो हाडौती (पलायता) में केलू की; दक्षिणी राजस्थान के भील ऊंचे टीलो पर घर बनाते है, उसी परम्परा में बना है, डूंगरपुर का भील डूंगरपुर आवास; बाड़मेर के गोल झौपे निर्माण में सेवण घास की छप्पर और आक की लकड़ी लगी है; बीकानेर और सीकर के निवास भी अपने-अपने क्षेत्र में उपलब्ध निर्माण सामग्री से बने है; बीच का बाजार (हॉट) जयपुर का है इन मकानों में बने मांडणे भी संबंधित क्षेत्रों से ही लिए गये है। यहां देखा जा सकता है समग्र राजस्थान।
भारतीय हस्तशिल्पियों और उनके हस्त कौशल का संगम 'लोकरंगÓ के अवसर पर शिल्पग्राम में देखने को मिलता है। सभी प्रदेशों के शिल्पी अपनी श्रेष्ठ कृतियों के साथ यहां आते है। इनमें राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त शिल्पी तो होते ही है, कुछ नए कलाकारों को भी अवसर दिया जाता है ताकि नई पीढ़ी भी तैयार हो। विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार के सक्रिय आर्थिक सहयोग से आयोजित यह मेला शिल्पकला के खरीददारों को भी प्रोत्साहित करता है। मेले में लगभग 150 स्टॉल में देश के विभिन्न देशों के हस्तशिल्प कलाकार अपनी हस्तकला को प्रदर्शित करेंगे।
जयपुर, जोधपुर का बंधेज, कच्छ की कशीदाकारी, मोलेला - पोकरण की मृदाकला, बस्तर का लोह शिल्प, बंगाल का चर्म शिल्प, दक्षिण भारत की वस्त्र बुनाई, लाख, नमदा, काष्ठ शिल्प, मोजड़ी कोल्हापुरी चप्पल, चिकनकारी, पैच वर्क, बांस-बैत का काम, यानि लोगों का मन मोह लेने वाले हर प्रकार के शिल्प प्रदर्शन और बिक्री के लिए यहां उपलब्ध रहेगा।
त्यौहारों को और अधिक जीवंत बनाने के लिए लोक कलाकार अपने संगीत और नृत्य की छटा प्रति दिवस शिल्पग्राम के डूंगरपुर हट के मंच पर बिखेरेंगे। वही नट, बहुरूपिया, अलगोजा, कठपुतली कलाकार भी अपनी कला से दर्शकों को रू-ब-रू करवायेंगे।

प्रतिभागी राज्य हैं
अरूणाचल प्रदेश, असम, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा, लक्षद्वीप, ओड़ीसा, कर्नाटक, केरल, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, पंजाब, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, महाराष्ट्र, हरियाणा एवं राजस्थान।

राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह मध्यवर्ती में
सायं 7 बजे से
प्रायोजक हैं:
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर
उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, इलाहाबाद
उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, पटियाला
दक्षिणी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, तेजावुर
तमिलनाडू, गोवा, महाराष्ट्र, बिहार
हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड
मध्य प्रदेश, त्रिपुरा, ओडिसा, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश व राजस्थान।

बुधवार, 7 नवंबर 2012

शिल्प के राष्ट्रीय पुरस्कार 9 को

मूमल नेटवर्क , नई दिल्ली। हस्तशिल्प के क्षेत्र में श्रेष्ठ चुनिंदा कृतियों के शिल्पकारों को राष्ट्रीय सम्मान व पुरस्कार प्रदान करने के लिए 9 नवम्बर को राजधानी दिल्ली में समारोह होगा।
अगर सब निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हुआ तो विज्ञान भवन में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी शिल्पियों को एक समारोह में सम्मानित करेंगे।
भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के आधीन कार्यरत हस्तशिल्प विकास आयुक्त द्वारा प्रति वर्ष देशभर से चुने गए 20 श्रेष्ठ शिल्प कार्यों के लिए यह सम्मान दिए जाते हैं। इनमें 10 राष्ट्रीय पुरस्कार और 10 राष्ट्रीय मेंरिट प्रमाण की  श्रेणी में होते हैं। पिछले वर्ष 2010 के लिए यह पुरस्कार प्रदान नही  किए जा सके थे। इसलिए इस वर्ष 2011 के पुरस्कारों के साथ वह भी प्रदान किए जाएंगे।