मंगलवार, 2 जून 2009

बागोर की हवेली में हस्तशिल्प संग्रहालय


उदयपुर में पिछोला झील के किनारे तथा प्रसिद्ध जगदीश मंदिर से करीब सौ मीटर की दूरी पर गणगौर घाट पर स्थित बागोर की हवेली संग्रहालय बनाया गया है। बागोर की हवेली के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए तथा इसे प्राचीन स्वरूप में पुर्नस्थापित करने के लिए 1992 में इसके कायाकल्प का निर्णय लिया गया। संग्रहालय की स्थापना का मुख्य ध्येय मेवाड़ के राजसी वैभव को हवेली संस्कृति के प्रतीक रूप में दर्शाना है। इन कक्षों मे दैनिक उपयोग की वस्तुएं अलंकार-मंजूषा, सांप-सीढ़ी व चौपड़ जैसे खेल, हस्तचालित पंखे, गुलाब जल छिड़कने का यंत्र, तांबे के पात्र व अन्य घरेलु वस्तुएं इस संग्रहालय में प्रदर्शित की गई है।लगभग 75 लाख रूपये व्यय करने तथा पांच वर्ष के अथक प्रयासों के बाद, पारंपरिक आराईश पद्धति के प्रयोग व स्थानीय लोगों के कौशल से हवेली का उसके मूल स्वरूप में पुनरूद्धार किया गया, जिसमें हवेली में 19वीं व 20वीं शताब्दी में निर्मित भित्तिचित्रों को पारंपरिक एवं रासायनिक प्रक्रिया द्वारा चूने की परतों से उकेर कर दृश्यमान करना, दरवाजो, खिडकियों व रंग-बिरंगे कांच जड़ित जालीदार झरोखों की मरम्मत उल्लेखनीय है। इस संग्रहालय को राजसी वैभव देने के लिए राजपरिवार से जुड़े लोगों की सहायता ली गई। इसमें रानी के महल (जनाना महल) की भीतरी सज्जा को दर्शाया गया जिसमें बैठक कक्ष, शनय कक्ष, स्नानागार, श्रृंगार कक्ष, आमोद-प्रमोद कक्ष, पूजाघर तथा रसोईघर, राजमाता का कक्ष सुसज्जित किए गए है।
मुख्य आकर्षण
- शहर की सर्वश्रेष्ठ वास्तुशिल्प

-हवेली - राजसी वैभव एवं हवेली संस्कृति का प्रतीक दर्शन

- कांच जड़ित कार्य

-भित्ति चित्र

समय - प्रात: 10 ।00 से सायं 7।00 बजे तक

शुल्क - विदेश 25- रूपये, वयस्क 15- रूपये, बालक 7- रूपये

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