मंगलवार, 11 नवंबर 2008

सिकुड़ रहा है सिल्क साड़ी का कारोबार

मंदी में नहीं मिल रहे खरीदार ग्राहक

पावरलूम भी दे रहा हथकरघा को कड़ी चुनौती

एक दशक के उथल-पुथल के बाद जब वाराणसी का सिल्क उद्योग पटरी पर आता दिखाई दे रहा था, तभी मंदी और आर्थिक संकट का रोड़ा राह रोक खड़ा हो गया है। संकरी गलियां, मंदिर, पंडे और सिल्क की साड़ियां इस प्राचीन शहर की पहचान हैं।

बाहर के ऑर्डर तो छोड़ भी दें तो पिछले कई दिनों से घरेलू बाजारों से भी आशानुरूप ऑर्डर नहीं मिल रहा है। शादियों के मौसम में आंध्र प्रदेश में भी बनारसी साड़ियां की खूब मांग होती है, लेकिन इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। खास बात यह कि अब ग्राहक कम कीमत वाली साड़ियां खरीदने पर जोर दे रहे हैं। पहले जहां 4000-5000 रुपये तक कीमत वाली साड़ियां खूब बिकती थीं, वहीं अब ग्राहक 2000 रुपये वाली साड़ियों की मांग करते हैं।

दरअसल देश के आर्थिक विकास और मंदी का सीधा असर 0सिल्क साड़ियों के बाजार पर पड़ता है। कुछ माह पहले तक लोगों के पास काफी पैसा था और महंगी साड़ियां भी खरीदने को तैयार रहते थे। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है और मांग काफी कम हो गई है और घाटा उठाना पड़ रहा है। वैश्विक मंदी से सिल्क कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। शादी और क्रिसमस जैसे पीक सीजन में भी ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं।

पिछले दशक में परंपरागत हैंडलूम को पावरलूम ने कड़ी चुनौती दी, जिससे भी कारोबार पर असर पड़ा। वहीं सूरत में सिंथेटिक मैटीरियल से साड़ी बनाई जाने लगी, जो काफी सस्ती पड़ती है। हैंडलूम में जहां एक साड़ी पर 500 रुपये की मजदूरी देनी पड़ती है, वहीं पावरलूम में यह खर्च मात्र 100 रुपये आता है। अगर हम इसे 1200 रुपये में बेचते हैं, तो केवल 10 फीसदी का मुनाफा होता है, जबकि पावरलूम में बनी साड़ियां 900 रुपये में बिकने के बाद भी 20 फीसदी मुनाफा देती हैं। बनारस का सिल्क उद्योग इस समस्या से जूझ ही रहा था कि आर्थिक संकट के रूप में दूसरी समस्या आ गई।

मूमल विचार :

संकट के समय में धैर्य न खोएं। अपनी पूँजी अभी कारोबार बढाने या प्रचार में न लगाएं। अगर कच्चा माल सस्ता हो तो पूँजी का उपयोग उसे लेकर जमा करने में करें।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

n keval silk uhyog kaha jaye to pure ke pure hastshilp uhyog par ese smay me aaka andi ki mar pari he jab hastshilpki rahe vishva star par aasan hone lagi thi. lagatar gulami aur phir aazadi ke bad dsh ko sambhalne ke lamb samay ke bad jab hastshilp karobar ne rahat ki sanse lena shuru hi kiya ha to mndi ki mar m aa gaya. moomal ki tiprni hastshilpiyon ke liye kam ki he. aachhi lagi.