शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

राजस्थान के हाट-मेले हो सकते हैं प्रभावित

ग्रामीण हाट
देश में आतंक की अबतक की सबसे बड़ी वारदात के बाद मुंबई ही नहीं राजस्थान बाजार भी प्रभावित होगें और इसका असर यहाँ के मेलों और क्राफ्ट बाजार पर भी नजर आएगा। फ़िर भी राजस्थान के उद्यम प्रोत्साहन संस्थान द्वारा जारी मेलों और प्रदर्शनियों का पूर्वनियोजित कार्यक्रम यहाँ प्रस्तुत है। इसमे फेर-बदल होने पर आपको फ़िर अवगत कराने का पूरा प्रयास रहेगा।

सोमवार, 24 नवंबर 2008

वोट की ताकत शक्ति जैसी



मताधिकार का उपयोग जरुर करें।
कला, संस्कृति और शिल्प के बारे में बात करते हुए राजनीति पर चर्चा करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। इनदिनों चारों और चल रही चुनावी चर्चाओं के बीच केवल यह कहना जरुरी लग रहा है कि अगर कोई नेता या उसकी पार्टी हमारी विशेष जरूरतों की बात नहीं करे या इनके लिए कोई चुनावी वादा नही करे तो इस बात की परवाह न करें। उन पर नाराज होकर अपनी ताकत को बेकार न जाने दें। वोट डालने के मामले में उदासीन न हों। अपने मताधिकार का उपयोग जरुर करें।
हो सकता है हमारी जरुररों की मांग अभी जंगल में रोने के सिवाय कुछ नहीं, लेकिन हमारा यह वोट सिर्फ चुनाव लड़ने वालों की ही किस्मत नहीं बदलेगा, यह हमारी भी किस्मत बदलेगा। हम जिस तरह के उम्मीदवार को वोट देंगे, हमारा मुस्तकबिल भी वैसा ही होगा। वोट ही हमारी ताकत है। अगर सभी वोट डालें और सही आदमी को चुनें तो मुझे नहीं लगता कि बिजली, पानी, सड़क, स्कूल या रोजगार के साथ हमारी अन्य दिक्कतें भी दूर होगी। वोट ही हमें तरक्की के रास्ते पर ले जा सकता है।
आजादी यही तो है। यहां हम अपनी मर्जी का हुक्मरान चुनते है जो हमारी मर्जी से काम करता है। अगर वह हमारे लिए काम नहीं करेगा तो हम उसे बदल देंगे। इसी पोलिंग बूथ के रास्ते हमें मंजिल मिलेगी। हमें अपनी कला और संस्कृति के विकास व समृद्धि की जरूरत है और यह सब हासिल करने का यह सबसे बढि़या तरीका है। अब सभी लोगों ने इस सच्चाई को समझ लिया है इसलिए वे अपने मत का प्रयोग करने के लिए वोट डालते हैं। अपने मताधिकार का प्रयोग करने से जी चुराने वालों को
अपनी ताकत जानने की जरूरत है। वोट देना हमारा फर्ज है। इससे हमारी तकदीर बदलती है।
यही एक दिन होता है जिस दिन हम बादशाह होते है और अगले कुछ सालों तक किसी और को बादशाहत देते है ताकि वह हमारे लिए काम करे। अच्छी हुकूमत होगी तो ये दिक्कतें दूर हो जाएंगी।अगर हम वोट डालने नहीं आएंगे तो फिर वही लोग हुकुमत करेंगे जो हमारी पसंद के नहीं होंगे और जिन्हे हमारी कोई चिंता नहीं होगी। आपने कभी वोट डाला है? अगर नहीं तो फिर इस बार आप वोट जरुर डालो, अपने आप पता चल जाएगा कि अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करना कैसा लगता है।

बुधवार, 19 नवंबर 2008

नवम्बर माह के अरबन हाट और मेले का कार्यक्रम

उद्यम प्रोत्साहन संस्थान से प्राप्त जानकारी के मुताबिक नवम्बर माह के अरबन हाट और मेले का कार्यक्रम आप के लिए हुबहू प्रस्तुत है। ज्यादा जानकारी के लिए कार्यालय आयुक्त उद्योग, राजस्थान के उद्योग भवन, तिलक मार्ग, जयपुर स्थित दफ्तर से संपर्क किया जा सकता है।

मंगलवार, 11 नवंबर 2008

सिकुड़ रहा है सिल्क साड़ी का कारोबार

मंदी में नहीं मिल रहे खरीदार ग्राहक

पावरलूम भी दे रहा हथकरघा को कड़ी चुनौती

एक दशक के उथल-पुथल के बाद जब वाराणसी का सिल्क उद्योग पटरी पर आता दिखाई दे रहा था, तभी मंदी और आर्थिक संकट का रोड़ा राह रोक खड़ा हो गया है। संकरी गलियां, मंदिर, पंडे और सिल्क की साड़ियां इस प्राचीन शहर की पहचान हैं।

बाहर के ऑर्डर तो छोड़ भी दें तो पिछले कई दिनों से घरेलू बाजारों से भी आशानुरूप ऑर्डर नहीं मिल रहा है। शादियों के मौसम में आंध्र प्रदेश में भी बनारसी साड़ियां की खूब मांग होती है, लेकिन इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। खास बात यह कि अब ग्राहक कम कीमत वाली साड़ियां खरीदने पर जोर दे रहे हैं। पहले जहां 4000-5000 रुपये तक कीमत वाली साड़ियां खूब बिकती थीं, वहीं अब ग्राहक 2000 रुपये वाली साड़ियों की मांग करते हैं।

दरअसल देश के आर्थिक विकास और मंदी का सीधा असर 0सिल्क साड़ियों के बाजार पर पड़ता है। कुछ माह पहले तक लोगों के पास काफी पैसा था और महंगी साड़ियां भी खरीदने को तैयार रहते थे। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है और मांग काफी कम हो गई है और घाटा उठाना पड़ रहा है। वैश्विक मंदी से सिल्क कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। शादी और क्रिसमस जैसे पीक सीजन में भी ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं।

पिछले दशक में परंपरागत हैंडलूम को पावरलूम ने कड़ी चुनौती दी, जिससे भी कारोबार पर असर पड़ा। वहीं सूरत में सिंथेटिक मैटीरियल से साड़ी बनाई जाने लगी, जो काफी सस्ती पड़ती है। हैंडलूम में जहां एक साड़ी पर 500 रुपये की मजदूरी देनी पड़ती है, वहीं पावरलूम में यह खर्च मात्र 100 रुपये आता है। अगर हम इसे 1200 रुपये में बेचते हैं, तो केवल 10 फीसदी का मुनाफा होता है, जबकि पावरलूम में बनी साड़ियां 900 रुपये में बिकने के बाद भी 20 फीसदी मुनाफा देती हैं। बनारस का सिल्क उद्योग इस समस्या से जूझ ही रहा था कि आर्थिक संकट के रूप में दूसरी समस्या आ गई।

मूमल विचार :

संकट के समय में धैर्य न खोएं। अपनी पूँजी अभी कारोबार बढाने या प्रचार में न लगाएं। अगर कच्चा माल सस्ता हो तो पूँजी का उपयोग उसे लेकर जमा करने में करें।

रविवार, 9 नवंबर 2008

स्वागत शिल्पी जी

"मूमल" के इस ब्लॉग में आपका स्वागत है।

कला और शिल्प से जुड़े मेले और प्रदर्शनों कि ख़बरों के लिए अब तक आप से हर पन्द्रह दिन में "मूमल" मुखातिब होती रही है। आपकी प्रतिक्रियाओं से यह साफ़ हो गया कि आपसे रूबरू होने के लिए पन्द्रह दिन का अन्तराल बहुत ज्यादा है। आप तक कागज के जरिये पहुँचने कि मेरी कुछ सीमाएं हैं। जाहिर है समय और साधन के साथ आर्थिक कारण भी इस अन्तराल को बढ़ा रहा था।

इस दूरी और अन्तराल को कम कराने के लिए जी-मेल के इस ब्लॉग कि जितनी सराहना कि जाए कम है। हो सकता है सूचनाओं के इस ब्लॉग को मैं रोज अपडेट नहीं कर सकूँ , लेकिन यह भरोसा दिलाना चाहती हूँ कि मुझे मेलों और प्रदशर्नी कि जो भी नई जानकारी मिलेगी , समाचार पता चलेगा या आप के हित में जगजाहिर करने जैसी कोई बात सामने आएगी उसे मैं जल्द से जल्द आपके लिए इस ब्लॉग पर बेलाग परोस दूंगी। अब वह खट्टा होगा या मीठा ? ये आपके जायके पर निर्भर होगा।

आशा है मेरा यह प्रयास आपके लिए उपयोगी होगा।