बुधवार, 24 दिसंबर 2008
2008 - A memorable year for Indian art
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008
पांच सौ बच्चों के लिए दो वर्षीय स्कालरशिप
परफोर्मिंग आर्ट में नई उमर के बच्चों का रुझान बढाने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा दो वर्षीय स्कालरशिप देने का फ़ैसला किया गया है।
इसमें १० से १४ साल के ऐसे बच्चों को दो साल के लिए ७२०० रुपये दिए जायेंगे जो गायन, वादन, डांस, ड्रामा और पेंटिंग में अच्छा कार्य कर रहें हैं। पुरे भारत में कुल ५०० स्कालरशिप दी जाएँगी। आवेदन की अन्तिम तिथि ३१ दिसम्बर २००८ है। जयपुर स्थित दो संस्थाएं क्युरियो और आलाप इसके लिए फ्री काउंसलिंग दे रही हैं।
अगर आप किसी बच्चे के लिए इसमें रूचि लेना चाहें और विस्तृत विवरण चाहते हों तो भारत सरकार के संस्कृति विभाग से सीधे संपर्क कर सकते हैं और इसमे असुविधा हो तो इस ब्लॉग की टिप्पणी सुविधा के जरिए मूमल से भी और जानकारी ले सकतें हैं।
शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008
सर्दी आई खादी लाई
जयपुर में सर्दी ने ज़ोर पकड़ लिया है, हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी खादी के उत्पादों की बिक्री के लिए रामलीला मैदान में राज्य खादी ग्रामोद्योग द्वारा प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है । इस प्रदर्शनी का उदघाटन ५ दिसंबर की शाम को किया जाएगा। यह प्रदर्शनी १३ जनवरी २००९ तक चलेगी जिसमे देश भर से आए खादी उत्पादक अपने अपने उत्पादों का प्रदर्शन करेंगे। इसका आयोजक राजस्थान खादी ग्रामोद्योग संस्था संघ जयपुर है । किसी भी पूछताछ के राजस्थान खादी ग्रामोद्योग संस्था संघ , बजाज नगर जयपुर स्थित कार्यालय में संपर्क किया जा सकता है। प्रदर्शनी के प्रायोजक खादी और ग्रामोद्योग आयोग है। कार्यालय के फोन नम्बर हैं ०१४१-२७०७८५०
शुक्रवार, 28 नवंबर 2008
राजस्थान के हाट-मेले हो सकते हैं प्रभावित
देश में आतंक की अबतक की सबसे बड़ी वारदात के बाद मुंबई ही नहीं राजस्थान बाजार भी प्रभावित होगें और इसका असर यहाँ के मेलों और क्राफ्ट बाजार पर भी नजर आएगा। फ़िर भी राजस्थान के उद्यम प्रोत्साहन संस्थान द्वारा जारी मेलों और प्रदर्शनियों का पूर्वनियोजित कार्यक्रम यहाँ प्रस्तुत है। इसमे फेर-बदल होने पर आपको फ़िर अवगत कराने का पूरा प्रयास रहेगा।
सोमवार, 24 नवंबर 2008
वोट की ताकत शक्ति जैसी
मताधिकार का उपयोग जरुर करें।
कला, संस्कृति और शिल्प के बारे में बात करते हुए राजनीति पर चर्चा करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। इनदिनों चारों और चल रही चुनावी चर्चाओं के बीच केवल यह कहना जरुरी लग रहा है कि अगर कोई नेता या उसकी पार्टी हमारी विशेष जरूरतों की बात नहीं करे या इनके लिए कोई चुनावी वादा नही करे तो इस बात की परवाह न करें। उन पर नाराज होकर अपनी ताकत को बेकार न जाने दें। वोट डालने के मामले में उदासीन न हों। अपने मताधिकार का उपयोग जरुर करें।
यही एक दिन होता है जिस दिन हम बादशाह होते है और अगले कुछ सालों तक किसी और को बादशाहत देते है ताकि वह हमारे लिए काम करे। अच्छी हुकूमत होगी तो ये दिक्कतें दूर हो जाएंगी।अगर हम वोट डालने नहीं आएंगे तो फिर वही लोग हुकुमत करेंगे जो हमारी पसंद के नहीं होंगे और जिन्हे हमारी कोई चिंता नहीं होगी। आपने कभी वोट डाला है? अगर नहीं तो फिर इस बार आप वोट जरुर डालो, अपने आप पता चल जाएगा कि अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करना कैसा लगता है।
बुधवार, 19 नवंबर 2008
नवम्बर माह के अरबन हाट और मेले का कार्यक्रम
मंगलवार, 11 नवंबर 2008
सिकुड़ रहा है सिल्क साड़ी का कारोबार
मंदी में नहीं मिल रहे खरीदार ग्राहक
पावरलूम भी दे रहा हथकरघा को कड़ी चुनौती
एक दशक के उथल-पुथल के बाद जब वाराणसी का सिल्क उद्योग पटरी पर आता दिखाई दे रहा था, तभी मंदी और आर्थिक संकट का रोड़ा राह रोक खड़ा हो गया है। संकरी गलियां, मंदिर, पंडे और सिल्क की साड़ियां इस प्राचीन शहर की पहचान हैं।
बाहर के ऑर्डर तो छोड़ भी दें तो पिछले कई दिनों से घरेलू बाजारों से भी आशानुरूप ऑर्डर नहीं मिल रहा है। शादियों के मौसम में आंध्र प्रदेश में भी बनारसी साड़ियां की खूब मांग होती है, लेकिन इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। खास बात यह कि अब ग्राहक कम कीमत वाली साड़ियां खरीदने पर जोर दे रहे हैं। पहले जहां 4000-5000 रुपये तक कीमत वाली साड़ियां खूब बिकती थीं, वहीं अब ग्राहक 2000 रुपये वाली साड़ियों की मांग करते हैं।
दरअसल देश के आर्थिक विकास और मंदी का सीधा असर 0सिल्क साड़ियों के बाजार पर पड़ता है। कुछ माह पहले तक लोगों के पास काफी पैसा था और महंगी साड़ियां भी खरीदने को तैयार रहते थे। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है और मांग काफी कम हो गई है और घाटा उठाना पड़ रहा है। वैश्विक मंदी से सिल्क कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। शादी और क्रिसमस जैसे पीक सीजन में भी ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं।
पिछले दशक में परंपरागत हैंडलूम को पावरलूम ने कड़ी चुनौती दी, जिससे भी कारोबार पर असर पड़ा। वहीं सूरत में सिंथेटिक मैटीरियल से साड़ी बनाई जाने लगी, जो काफी सस्ती पड़ती है। हैंडलूम में जहां एक साड़ी पर 500 रुपये की मजदूरी देनी पड़ती है, वहीं पावरलूम में यह खर्च मात्र 100 रुपये आता है। अगर हम इसे 1200 रुपये में बेचते हैं, तो केवल 10 फीसदी का मुनाफा होता है, जबकि पावरलूम में बनी साड़ियां 900 रुपये में बिकने के बाद भी 20 फीसदी मुनाफा देती हैं। बनारस का सिल्क उद्योग इस समस्या से जूझ ही रहा था कि आर्थिक संकट के रूप में दूसरी समस्या आ गई।
मूमल विचार :
संकट के समय में धैर्य न खोएं। अपनी पूँजी अभी कारोबार बढाने या प्रचार में न लगाएं। अगर कच्चा माल सस्ता हो तो पूँजी का उपयोग उसे लेकर जमा करने में करें।
रविवार, 9 नवंबर 2008
स्वागत शिल्पी जी
कला और शिल्प से जुड़े मेले और प्रदर्शनों कि ख़बरों के लिए अब तक आप से हर पन्द्रह दिन में "मूमल" मुखातिब होती रही है। आपकी प्रतिक्रियाओं से यह साफ़ हो गया कि आपसे रूबरू होने के लिए पन्द्रह दिन का अन्तराल बहुत ज्यादा है। आप तक कागज के जरिये पहुँचने कि मेरी कुछ सीमाएं हैं। जाहिर है समय और साधन के साथ आर्थिक कारण भी इस अन्तराल को बढ़ा रहा था।
इस दूरी और अन्तराल को कम कराने के लिए जी-मेल के इस ब्लॉग कि जितनी सराहना कि जाए कम है। हो सकता है सूचनाओं के इस ब्लॉग को मैं रोज अपडेट नहीं कर सकूँ , लेकिन यह भरोसा दिलाना चाहती हूँ कि मुझे मेलों और प्रदशर्नी कि जो भी नई जानकारी मिलेगी , समाचार पता चलेगा या आप के हित में जगजाहिर करने जैसी कोई बात सामने आएगी उसे मैं जल्द से जल्द आपके लिए इस ब्लॉग पर बेलाग परोस दूंगी। अब वह खट्टा होगा या मीठा ? ये आपके जायके पर निर्भर होगा।
आशा है मेरा यह प्रयास आपके लिए उपयोगी होगा।